Thursday, September 20, 2012

पुरुष छिनाल क्यों नहीं ?




आज एक फिर नया विमर्श. महिलायें यदि छिनाल हो सकती हैं तो पुरुष क्यों नहीं? जिस योनी स्वछंदता को अपनाने के बाद महिलायें छिनाल हो जाती हैं, तो पुरुष भी छिनाल हो सकता है. अब वक्त आ गया है कि पुरुष को भी छिनाल घोषित किया जाए. पुरुष को भी छिनाल महिलाओं की तरह समाज में उपेक्षित किया जाए. यह मांग और विचार ना तो मेरा है और ना ही आज की कोई मांग है. समाजवादी चिन्तक राम मनोहर लोहिया ने यह आवाज़ उठाई थी. मैं तो इस बात का पुर जोर समर्थन करता हूँ. यदि पुरुष को छिनाल घोषित नहीं किया जा सकता तो महिलाओं को ऐसा कहने का कोई तर्क नहीं है. आज से अपने आस-पास के ऐसे छिनालों को चिन्हित किया जाए. 
     यदि पुरुषों को छिनाल घोषित करने का चलन शुरू हो गया, तब समाज में सच में एक बड़ी क्रांति हो सकती है. मुझे लगता है कि इसकी शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी. यदि अपनी बहन इस स्वछंदता को अपनाती है, तब पूरा समाज हमें " छिनाल परिवार  " कह कर संबोधित करता है. लेकिन जब यही काम अपना कोई भाई और चाचा करके आते हैं,  तब बड़े शान से गाँव के चौपाल पर इसकी चर्चा करते हैं. २१वी सदी नारी सदी हुई तो महिलाएँ सदियों का बदला ले लेंगी. इसकी शुरुआत भी हो चुकी है. इन दिनों मैं लोहिया को पढ़ रहा हूँ. मुझे लोहिया तो ultra मोडर्न मालुम पड़ते हैं. खास तौर पर जिस ढंग से महिलाओं की आजादी बात उन्होंने की है, सच में काबिल-ए-तारीफ है. 

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