Thursday, September 20, 2012

आज-कल हावी हो रहे हैं ' मिडीयोक्रेट '



' मिडीयोक्रेट '.  आज एक नए शब्द का ज्ञान हुआ. नया इस मायने में आज मैं इससे पहली बार रु-ब-रु हो रहा था. इसकी पूरी व्याख्या भी की गई. ब्यूरोक्रेट के मानिंद ही ही इसका भी अर्थ है. कमोबेश सभी मीडिया घरानों में ' मिडीयोक्रेट ' का चलन हो गया है. अखबार के मालिकों को अब संपादकों पर तो भरोसा रहा ही नहीं. पूरा सम्पादकीय आज ' मिडीयोक्रेट ' के सहारे ही चल रहा है.  मौका था- मीडिया, कॉर्पोरेट और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आयोजित परिसंवाद का. महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के हबीब तनवीर सभागार में मीडिया जगत के कई पीड़ित संपादक जमा हुए थे. पीड़ित इस मायने में मैं कह रहा हूँ की आज की तारीख में एक को छोड़कर सभी का परिचय पूर्व संपादक के तौर पर ही करवाया जा रहा था. हालाँकि उनमे अभी काम करने की पूरी क्षमता है. इस परिसंवाद में शामिल हुए थे-- हिंदुस्तान टाइम्स के पूर्व संपादक सी के नायडू, इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक दर्शन देसाई और आउटलुक की गीता श्री. गीता श्री पत्रकारिता में एक महिला होने की पीड़ा सुना रही थी. " पिछले २२ सालों में मैं फूटी हुई कारतूस हो गई हूँ. आपके फीलिंग को जब एडिट किया जाता है, पत्रकारों को रास्ता बदलना  पड़ता है. पत्रकारों को बर्बाद करने वाली संस्था का नाम है- संपादक. " गीता श्री के ये कुछ शब्द थे. सी के नायडू----" २० साल पहले यह सोचते थे कि क्या छापना है. आज सोचते हैं कि क्या-क्या नहीं छापना है? "

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