Thursday, September 20, 2012

समाज के लिए साधना कर रही हैं मनोरमा


मनोरमा जी अपने में एक जीती जागती इतिहास हैं। जब मुझे मालूम हुआ कि  मनोरमा जी लोक नायक जय प्रकाश  नारायण जी की दत्तक  पुत्री हैं, तब मेरी नजरों में उनका सम्मान और बढ़ गया। जिसके नाम की राजनीति करके आज बिहार में आज मोदी-लालू-नितीश सत्ता का सुख भोग रहे हैं, उनकी बेटी आज सन्यासिन हैं। साध्वी हैं। गुमनाम जिन्दगी जी रही हैं। पता नहीं जे पी के चेलों  को इनके बारे में जानकारी है भी या नहीं। मैं तो  उनसे बात करके धन्य हो रहा था।
                                       मनोरमा जी एक गीता की उपासक हैं। पूरा आश्रम श्रम की पूजा के  पैर चलता है। सभी  लोग इतना तो श्रम कर ही लेते हैं कि कम-से-कम अपने लिए खाने का इंतजाम कर लें। जब मैंने मनोरमा  जी से पूछा कि करीब 38 साल यहाँ बिताने के बाद आपके हाथ क्या आया? थोड़ी देर के लिए मनोरमा चुप चाप मेरे चेहरे को पढ़ रही थी। शायद यही सोच रही थी कि आखिर इस बच्चे को कैसे समझाया जाय। कहती हैं कि  जो मैंने पाया है, उसकी किसी चीज़ से तुलना नहीं की जा सकती। सुबह से शाम तक यहाँ पर ध्यान का कार्यक्रम चलता है। पूरी व्यवस्था ठीक उसी तरह की है जैसे किसी जमाने में ऋषि जंगल में जाकर ध्यान किया करते थे। ध्यान के दौरान अपने लिए सभी जरूरी आवश्यकताएं उन्हें खुद पूरी करनी होती थी, ठीक उसी तर्ज़ पर यहाँ पैर महिलाओं के लिए व्यवस्था  बनाई गई  है।
                                     चेनम्मा जी की उम्र 82 साल है। अभी वो अपने पूरी तरह स्वस्थ हैं।  कर्नाटक की रहने वाली चेनम्मा पिछले 40 सालों से ब्रह्मा विद्या मंदिर में रह रही हैं। सन्यासिन का जीवन जी रही चेनम्मा यहाँ आने के पहले कस्तूरबा विद्यालय में विनोबा जी से मिली थीं। चेनम्मा जी ने बताया कि विनोबा जी उनसे कहा कि चलो तुम लोगों को लिए एक स्पेशल आश्रम बनवा देते हैं। उसके बाद से पवनार में आ गईं। जब गृहस्थ जीवन को लेकर चेनम्मा जी की राय ली, तब उनका कहना था कि  बेटा जो काम मैं इस जीवन में रह कर पूरा केर ले रही हूँ, वो उसमे संभव नहीं था। 

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